मूल नाम : गोपाल बहादुर सिंह
जन्म : 11 अगस्त, 1911, बेतिया, पश्चिम चंपारण (बिहार)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता, गीत
कविता संग्रह : उमंग (1933), पंछी (1934), रागिनी (1935), पंचमी (1942), नवीन (1944), नीलिमा (1945), हिमालय ने पुकारा (1963)
वे एक पत्रकार भी थे जिन्होने “रतलाम टाइम्स”, चित्रपट, सुधा, एवं योगी नामक चार पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् १९६२ के चीनी आक्रमन के समय उन्होने कई देशभक्तिपूर्ण गीत एवं कविताएं लिखीं जिनमें ‘सावन’, ‘कल्पना’, ‘नीलिमा’, ‘नवीन कल्पना करो’ आदि बहुत प्रसिद्ध हैं । 1933 में बासठ कविताओं का इनका पहला संग्रह ‘उमंग’ प्रकाशित हुआ था। ‘पंछी’ ‘रागिनी’ ‘पंचमी’ ‘नवीन’ और ‘हिमालय ने पुकारा’ इनके काव्य और गीत संग्रह हैं। नेपाली ने सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के साथ ‘सुध’ मासिक पत्र में और कालांतर में ‘रतलाम टाइम्स’, ‘पुण्य भूमि’ तथा ‘योगी’ के संपादकीय विभाग में काम किया था ।१९४४ से १९६३ तक मृत्यु पर्यंत वे बंबई में फ़िल्म जगत से जुड़े रहे। उन्होंने एक फ़िल्म का निर्माण भी किया।
मुंबई प्रवास के दिनों में नेपाली जी ने तकरीबन चार दर्जन फिल्मों के लिए गीत भी रचा था। उसी दौरान इन्होंने ‘हिमालय फिल्म्स’ और ‘नेपाली पिक्चर्स’ की स्थापना की थी। निर्माता-निर्देशक के तौर पर नेपाली ने तीन फीचर फिल्मों-नजराना, सनसनी और खुशबू का निर्माण भी किया था । गोपाल सिंह नेपाली के पुत्र नकुल सिंह नेपाली ने बम्बई उच्च न्यायालय में स्लमडॉग मिलेनियर के निर्माताओं के खिलाफ एक याचिका दायर किया जिसमें यह कहा गया है कि डैनी बॉयल ने दर्शन दो घनश्याम गाने के लिए सूरदास को उद्धृत किया है, जो कि गलत है ।
याचिका के अनुसार नेपाली के पुत्र नकुल सिंह ने यह कहा कि यह गाना उनके कवि पिता ने लिखा था और डैनी बॉयल तथा सेलॉदर फिल्म्स लिमिटेड ने उनके पिता की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाया है एवं लेखकीय अधिकारों का उल्लंघन किया है।
नेपाली ने मुआवजा के रुप में रु. ५ करोड और याचिका दायर होने की तिथि से निर्णय होने तक २१ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का दावा किया है। उन्होंने यह भी मांग की है कि फिल्म के किसी भी भाग में यह दर्शाने के लिए फिल्म निर्माताओं पर रोक लगायी जाए कि उक्त गाने के लेखक सूरदास हैं । 1963 में माते 52 वर्ष की उम्र में भागलपुर रेलवे स्टेशन पर देहांत ।
फ़िल्मों में लगभग 400 धार्मिक गीत लिखे। उनकी कुछ लोकप्रिय कविताएँ व गीत
यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल, कितना निर्मल,
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,
यह विमल दूध-सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल
बहता आता नीचे पल पल
तन का चंचल मन का विह्वल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
निर्मल जल की यह तेज़ धार
करके कितनी श्रृंखला पार
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार-बार
रखता है तन में उतना बल
यह लघु सरिता का बहता जल।।
एकांत प्रांत निर्जन निर्जन
यह वसुधा के हिमगिरि का वन
रहता मंजुल मुखरित क्षण-क्षण
लगता जैसे नंदन कानन
करता है जंगल में मंगल
यह लघु सरित का बहता जल।।
ऊँचे शिखरों से उतर-उतर,
गिर-गिर गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
दिन-भर, रजनी-भर, जीवन-भर,
धोता वसुधा का अंतस्तल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
मिलता है उसको जब पथ पर
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर
आकुल आतुर दुख से कातर
सिर पटक पटक कर रो-रो कर
करता है कितना कोलाहल
यह लघु सरित का बहता जल।।
हिम के पत्थर वे पिघल-पिघल,
बन गए धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल,
पी-पीकर अंजलि भर मृदु जल,
नित जल कर भी कितना शीतल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।
कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे! जननी का वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल,
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल।।
बदनाम रहे बटमार
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटादो दिन के रैन बसेरे की,
हर चीज़ चुराई जाती है
दीपक तो अपना जलता है,
पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाए
तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गए खुले भर रात नयन, दिल तो दिलदारों नर लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटाशबनम-सा बचपन उतरा था,
तारों की गुमसुम गलियों में
थी प्रीति-रीति की समझ नहीं,
तो प्यार मिला था छलियों से
बचपन का संग जब छूटा तो
नयनों से मिले सजल नयना
नादान नये दो नयनों को, नित नये बजारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
हर शाम गगन में चिपका दी,
तारों के अक्षर की पाती
किसने लिक्खी, किसको लिक्खी,
देखी तो पढ़ी नहीं जाती
कहते हैं यह तो किस्मत है
धरती के रहनेवालों की
पर मेरी किस्मत को तो इन, ठंडे अंगारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
अब जाना कितना अंतर है,
नज़रों के झुकने-झुकने में
हो जाती है कितनी दूरी,
थोड़ा-सी रुकने-रुकने में
मुझ पर जग की जो नज़र झुकी
वह ढाल बनी मेरे आगे
मैंने जब नज़र झुकाई तो, फिर मुझे हज़ारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
तन का दिया प्राण की बाती
दीपक जलता रहा रात भर
दुख की घनी बनी अंधियारी
सुख के टिमटिम दूर सितारे
उठती रही पीर की बदली
मन के पंछी उड़-उड़ हारे
बची रही प्रिय की आँखों से
मेरी कुटिया एक किनारे
मिलता रहा स्नेह रस थोड़ा
दीपक जलता रहा रात भर
दुनिया देखी भी अनदेखी
नगर न जाना, डगर न जानी
रंग न देखा, रूप न देखा
केवल बोली ही पहचानी
कोई भी तो साथ नहीं था
साथी था आँखों का पानी
सूनी डगर, सितारे टिम-टिम
पंथी चलता रहा रात भर
अगणित तारों के प्रकाश में
मैं अपने पथ पर चलता था
मैंने देखा; गगन-गली में
चांद सितारों को छलता था
आंधी में, तूफानों में भी
प्राणदीप मेरा जलता था
कोई छली खेल में मेरी
दिशा बदलता रहा रात भर
मेरे प्राण मिलन के भूखे
ये आँखें दर्शन की प्यासी
चलती रहीं घटाएँ काली
अम्बर में प्रिय की छाया-सी
श्याम गगन से नयन जुदाए
जगा रहा अंतर का वासी
काले मेघों के टुकड़ों से
चांद निकलता रहा रात भर
छिपने नहीं दिया फूलों को
फूलों के उड़ते सुवास ने
रहने नहीं दिया अनजाना
शशि को शशि के मंद ह्रास ने
भरमाया जीवन को दर-दर
जीवन की ही मधुर आस ने
मुझको मेरी आँखों का ही
सपना छलता रहा रात भर
होती रही रात भर चुप के
आँख-मिचौली शशि-बादल में
लुकते-छिपते रहे सितारे
अम्बर के उड़ते आँचल में
बनती-मिटती रहीं लहरियाँ
जीवन की यमुना के जल में
मेरे मधुर-मिलन का क्षण भी
पल-पल टलता रहा रात भर
सूरज को प्राची में उठ कर
पश्चिम ओर चला जाना है
रजनी को हर रोज़ रात भर
तारक दीप जला जाना है
फूलों को धूलों में मिल कर
जग का दिल बहला जाना है
एक फूँक के लिए प्राण का
दीप मचलता रहा रात भर
भीड़ों में भी मैं खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ
इतना सस्ता मैं हो न सकादेखा जग ने टोपी बदली
तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ
मन-मंदिर की प्रतिमा बदली
मेरे नयनों का श्याम रंग
जीवन भर कोई धो न सकाहड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बन के
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के
जो चाहा करता चला सदा
प्रस्तावों को मैं ढो न सका
दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं
सुख-शय्या पर भी सो न सका
चल रही बयार हो,
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो,
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध, संधि, क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।
तीन-चार फूल है,
आस-पास धूल है,
बाँस है -बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूँक दे, चकोर दे,
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य-प्राण दान है।
झूम-झूम बदलियाँ
चूम-चूम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत-हार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
नीले नभ में बादल काले, हरियाली में सरसों पीली
यमुना-तीर, घाट गंगा के, तीर्थ-तीर्थ में बाट छाँव की
सदियों से चल रहे अनूठे, ठाठ गाँव के, हाट गाँव की
शहरों को गोदी में लेकर, चली गाँव की डर नुकीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
खडी-खड़ी फुलवारी फूले, हार पिरोए बैठ गुजरिया
बरसाए जलधार बदरिया, भीगे जग की हरी चदरिया
तृण पर शबनम, तरु पर जुगनू, नीड़ रचाए तीली-तीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
घास-फूस की खड़ी झोपड़ी, लाज सँभाले जीवन भर की
कुटिया में मिट्टी के दीपक, मंदिर में प्रतिमा पत्थर की
जहाँ बाँस कंकड़ में हरि का, वहाँ नहीं चाँदी चमकीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली
जो कमला के चरण पखारे, होता है वह कमल कीच में
तृण, तंदुल, ताम्बूल, ताम्र, तिल के दीपक बीच-बीच में
सीधी-सादी पूजा अपनी, भक्ति लजीली मूर्ति सजीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
बरस-बरस पर आती होली रंगों का त्यौहार अनोखा
चुनरी इधर-उधर पिचकारी, गाल-भाल पर कुमकुम फूटा
लाल-लाल बन जाए काले, गोरी सूरत पीली-नीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
दीवाली दीपों का मेला, झिलमिल महल कुटी गलियारे
भारत भर में उतने दीपक, जितने जलते नभ में तारे
सारी रात पटाखे छोडे, नटखट बालक उम्र हठीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
खँडहर में इतिहास सुरक्षित, नगर-नगर में नई रोशनी
आए गए हुए परदेशी, यहाँ अभी भी वही चाँदनी
अपना बना हजम कर लेती, चाल यहाँ की ढीली-ढीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
मन में राम, बाल में गीता, घर-घर आदर रामायण का
किसी वंश का कोई मानव, अंश साझते नारायण का
ऐसे हैं भारत के वासी, गात गँठीला, बाट चुटीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
आन कठिन भारत की लेकिन, नर-नारी का सरल देश है
देश और भी हैं दुनिया में, पर गाँधी का यही देश है,
जहाँ राम की जय जग बोला, बजी श्याम की वेणु सुरीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति- रसम-ऋतुरंग-रँगीली
लो गंगा-यमुना-सरस्वती या लो मदिर-मस्जिद-गिरजा
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भजो या जीवन-मरण-मोक्ष की चर्चा
सबका यहीं त्रिवेणी-संगम, ज्ञान गहनतम, कला रसीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रँगीली
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रेआँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के
घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के
बाजी हारी हुई त्रिया की
जनम-जनम सौगात पिया की
बाबुल तुम गूँगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लड़ियाँ रेहमको सुध न जनम के पहले, अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे, हम थे गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन बसेरा
जहाँ साँझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय, हम झरनों की कड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लडियाँ रे
छितराए नौ लाख सितारे, तेरी नभ की छाया में
मंदिर-मूरत, तीरथ देखे, हमने तेरी काया में
दुख में भी हमने सुख देखा
तुमने बस कन्या मुख देखा
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो, हम कोमल पंखुड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
बचपन के भोलेपन पर जब, छिटके रंग जवानी के
प्यास प्रीति की जागी तो हम, मीन बने बिन पानी के
जनम-जनम के प्यासे नैना
चाहे नहीं कुँवारे रहना
बाबुल ढूँढ़ फिरो तुम हमको, हम ढूँढ़ें बावरिया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल-मर्यादा से जा टकराई
पगड़ी गिरने के डर से, दुनिया जा डोली ले आई
मन रोया, गूँजी शहनाई
नयन बहे, चुनरी पहनाई
पहनाई चुनरी सुहाग की, या डालीं हथकड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने, रीत निभाई प्रीत नहीं
तन का सौदा करके भी तो, पाया मन का मीत नहीं
गात फूल-सा, काँटे पग में
जग के लिए जिए हम जग में
बाबुल तुम पगड़ी समाज के, हम पथ की कंकड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
माँग रची आँसू के ऊपर, घूँघट गीली आँखों पर
ब्याह नाम से यह लीला जाहिर करवाई लाखों पर
जो घूँघट से डर-डर झाँके, वारा उसे बाजे बजवा के
गुड़ियाँ खेल बढ़े हम फिर भी, दुनिया समझे गुड़िया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
नेह लगा तो नैहर छूता, पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ
प्यार बताकर पीर मिली तो नीर बनीं फूटी अँखियाँ
हुई चलाकर चाल पुरानी
नयी जवानी पानी पानी
चली मनाने चिर वसंत में, ज्यों सावन की झड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
देखा जो ससुराल पहुँचकर, तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों-सा था देश हरा, पर काँटों की फुलवारी थी
कहने को सारे अपने थे
पर दिन दुपहर के सपने थे
मिली नाम पर कोमलता के, केवल नरम काँकड़िया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के, मुश्किल था बचकर जाना
हारा दाँव बचा लेने को, पति को परमेश्वर जाना
दुल्हन बनकर दिया जलाया
दासी बन घर बार चलाया
माँ बनकर ममता बाँटी तो, महल बनी झोंपड़िया रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
मन की सेज सुला प्रियतम को, दीप नयन का मंद किया
छुड़ा जगत से अपने को, सिंदूर बिंदु में बंद किया
जंजीरों में बाँधा तन को
त्याग-राग से साधा मन को
पंछी के उड़ जाने पर ही, खोली नयन किवड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
जनम लिया तो जले पिता-माँ, यौवन खिला ननद-भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला, पुत्र हुआ तो बंध्या भी
जले ह्रदय के अन्दर नारी
उस पर बाहर दुनिया सारी
मर जाने पर भी मरघट में, जल-जल उठीं लकड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
जनम-जनम जग के नखरे पर, सज-धजकर जाएँ वारी
फिर भी समझे गए रात-दिन हम ताड़न के अधिकारी
पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से
पहले ही हम चल बसें, तो फिर जग बँटे रेवड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ, ज्यों मोती की लड़ियाँ रे
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
भौंरों को देख उड़े भौंरे, कलियों को देख हँसीं कलियाँ,
कुंजों को देख निकुंज हिले, गलियों को देख बसीं गलियाँ,
गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो,
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो,
दो फूल मिले, खेले-झेले, वन की डाली पर झूल चले
इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले-भाले,
ऊँची नजरों चुपचाप रहे, नीची नजरों दोनों बोले,
दुनिया ने मुँह बिचका-बिचका, कोसा आजाद जवानी को,
दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को,
दो प्राण मिले झूमे-घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले,
तरुवर की ऊँची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने,
दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने,
मधुरस तो भौरें पिए चले, मधु-गंध लिए चल दिया पवन,
पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन-वन के सूखे पत्र-सुमन
दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले,
नदियों में नदियाँ घुली-मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं,
धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं,
अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही,
चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही,
दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
हम अमर जवानी लिए चले, दुनिया ने माँगा केवल तन,
हम दिल की दौलत लुटा चले, दुनिया ने माँगा केवल धन,
तन की रक्षा को गढ़े नियम, बन गई नियम दुनिया ज्ञानी,
धन की रक्षा में बेचारी, बह गई स्वयं बनकर पानी,
धूलों में खेले हम जवान, फिर उड़ा-उड़ा कर धूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
दूर जाकर न कोई बिसारा करे
दूर जाकर न कोई बिसारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे,
यूँ बिछड़ कर न रतियाँ गुजारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
मन मिला तो जवानी रसम तोड़ दे, प्यार निभता न हो तो डगर छोड़ दे,
दर्द देकर न कोई बिसारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
खिल रहीं कलियाँ आप भी आइए, बोलिए या न बोले चले जाइए,
मुस्कुराकर न कोई किनारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
चाँद-सा हुस्न है तो गगन में बसे, फूल-सा रंग है तो चमन में हँसे,
चैन चोरी न कोई हमारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
हमें तकें न किसी की नयन खिड़कियाँ, तीर-तेवर सहें न सुनें झिड़कियाँ,
कनखियों से न कोई निहारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
लाख मुखड़े मिले और मेला लगा, रूप जिसका जँचा वो अकेला लगा,
रूप ऐसे न कोई सँवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
रूप चाहे पहन नौलखा हार ले, अंग भर में सजा रेशमी तार ले,
फूल से लट न कोई सँवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
पग महावर लगाकर नवेली रँगे, या कि मेहँदी रचाकर हथेली रँगे,
अंग भर में न मेहँदी उभारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
आप पर्दा करें तो किए जाइए, साथ अपनी बहारें लिए जाइए,
रोज घूँघट न कोई उतारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
एक दिन क्या मिले मन उड़ा ले गए, मुफ्त में उम्र भर की जलन दे गए,
बात हमसे न कोई दुबारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे ।
कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
दुनिया के सूने आँगन में,
कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
वह मरघट का सन्नाटा तो रह-रह कर काटे जाता है
दुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम ज़ंजीरों की झनझन में,
सुन धर्म-कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनिया जल जाए
मानव का रूप बदल जाए
तुम आज जवानी के क्षण में,
कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
यह दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा-कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में,
कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आँधी-अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नवजीवन में नवयौवन में,
कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का शृंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत-वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में,
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामनाचाँद घूँघट घटा का उठाता रहा
द्वार घर का पवन खटखटाता रहा
पास आते हुए तुम कहीं छुप गए
गीत हमको पपीहा रटाता रहातुम कहीं रह गये, हम कहीं रह गए, गुनगुनाती रही वेदना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा
मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा
लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं
बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा
प्यार लेकिन वहाँ एकतरफ़ा रहा, लौट आती रही प्रार्थना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
शाम को तुम सितारे सजाते चले
रात को मुँह सुबह का दिखाते चले
पर दिया प्यार का, काँपता रह गया
तुम बुझाते चले, हम जलाते चले
दुख यही है हमें तुम रहे सामने, पर न होता रहा सामना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
उस पार
जो झलक उठा है मेरा भी आँगन ।उन मेघों में जीवन उमड़ा होगा
उन झोंकों में यौवन घुमड़ा होगा
उन बूँदों में तूफ़ान उठा होगा
कुछ बनने का सामान जुटा होगा
उस पार कहीं बिजली चमकी होगी
जो झलक उठा है मेरा भी आँगन ।तप रही धरा यह प्यासी भी होगी
फिर चारों ओर उदासी भी होगी
प्यासे जग ने माँगा होगा पानी
करता होगा सावन आनाकानी
उस ओर कहीं छाए होंगे बादल
जो भर-भर आए मेरे भी लोचन ।
मैं नई-नई कलियों में खिलता हूँ
सिरहन बनकर पत्तों में हिलता हूँ
परिमल बनकर झोंकों में मिलता हूँ
झोंका बनकर झोंकों में मिलता हूँ
उस झुरमुट में बोली होगी कोयल
जो झूम उठा है मेरा भी मधुबन ।
मैं उठी लहर की भरी जवानी हूँ
मैं मिट जाने की नई कहानी हूँ
मेरा स्वर गूँजा है तूफ़ानों में
मेरा जीवन आज़ाद तरानों में
ऊँचे स्वर में गरजा होगा सागर
खुल गए भँवर में लहरों के बंधन ।
मैं गाता हूँ जीवन की सुंदरता
यौवन का यश भी मैं गाया करता
मधु बरसाती मेरी वाणी-वीणा
बाँटा करती समता-ममता-करुणा
पर आज कहीं कोई रोया होगा
जो करती वीणा क्रंदन ही क्रंदन ।
मंदिर-मंदिर मूरत तेरी, फिर भी न दीखे सूरत तेरी ।
युग बीते, ना आई मिलन की पूरनमासी रे ।।
दर्शन दो घनश्याम, नाथ ! मोरि अँखियाँ प्यासी रे ।।
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम सुर में गूंगा बोले ।
अंधा देखे, लंगड़ा चल कर पँहुचे काशी रे ।।
दर्शन दो घनश्याम, नाथ ! मोरी अँखियाँ प्यासी रे ।।
पानी पी कर प्यास बुझाऊँ, नैनन को कैसे समझाऊँ ।
आँख मिचौली छोड़ो अब तो, घट-घट वासी रे ।।
दर्शन दो घनश्याम, नाथ ! मोरी अँखियाँ प्यासी रे ।। फ़िल्म ‘नरसी भगत’
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
अब क्या करूँ… रे अब क्या करूँ…
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ……
पास-पड़ोस मे
पास-पड़ोस मे बाजा बजे रे
दूल्हा के संग नयी दुल्हन सजे रे
मै तो बड़ी-बड़ी
मै बड़ी-बड़ी आंखो वाली देखा करूँ…
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ…
अब क्या करूँ… रे अब क्या करूँ…
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ…
सोलह बरस की मै तो
खुशबु हू कास की मै तो
बाकी मतवाली मै तो
प्याली हू देसी की
चढ़ाती उम्र नही बात मेरे बस की
जवानी मेरे बस की
नही जी मेरे बस की
हाय मोरे रामा
अकेली यहा पड़ी-पड़ी आहे भरू
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ…
अब क्या करूँ… रे अब क्या करूँ…
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ…
अब न रुकूँगी किसी के रोके
पीहर चलूगी मै पिया की हो के
डोलिया हिलेडोले
डोलिया हिलेडोले मै तो बैठी रहू
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूं
अब क्या करूँ… रे अब क्या करूँ…
किसी से मेरी प्रीत लगी अब
क्या करूँ…
उड़ाए लियो जाए फुलवारी की ठण्डी हवाठण्डी हवा जो चुनरी उड़ाए
गोरी ये मुखड़ा कहाँ छुपाए
भौरों की टोली नजर लगाए
ओ नज़र सबकी बचाए लियो जाएमेरी चुनरी उड़ाए लियो जाए
उड़ाए लियो जाए फुलवारी की ठण्डी हवा
ठण्डी हवा में मन मेरा चंचल
बहियाँ पकड़ के हवा कहे चल-चल
चलोगी कैसे बजेगी पायल
ओ मेरी पायल बजाए लियो जाए
मेरी चुनरी उड़ाए लियो जाए
उड़ाए लियो जाये फुलवारी की ठण्डी हवा
जब मेरे मन की चमेली फूले
फागुन में खेले सावन में झूले
भादों में रानी रस्ता न भूले
ओ मेरे मन को भुलाए लियो जाए
मेरी चुनरी उड़ाए लियो जाए
उड़ाए लियो जाए फुलवारी की ठण्डी हवा || फ़िल्म ‘नागपंचमी'[1953]
कहाँ तेरी मंज़िल कहाँ है ठिकाना
मुसाफ़िर बता दे कहाँ तुझको जाना
कहाँ तेरी मंज़िल …
गगन में उड़ने वालों का भी गुलशन रैन-बसेरा है
घर की ओर चले राही तो धुँधली शाम सवेरा है
सूरज-चाँद-सितारे हैं तो उनकी भी मंज़िल है
मंज़िल है तो जहाँ भी जाए राह तेरी झिलमिल है
बिन मंज़िल बेकार है ग़ाफ़िल, क़दम भी उठाना
मुसाफ़िर बता दे… || फ़िल्म ‘नई राहें ‘(1959)
बहारें आएँगी, होंठों पे फूल खिलेंगे
सितारों को मालूम था, हम-तुम मिलेंगे
छिटकेगी चाँदनी, सजेगा साज, प्यार का बजेगी पैंजनी
बसोगे मन में तुम तो मन के तार बजेंगे
सितारों को मालूम था…
मिला के नैन हम-तुम दो हो गए
अजी हम पलकें उठाते ही खो गए
नैन चुराएँगे, जिया निछावर करेंगे
कली जैसा कच्चा मन कहीं तोड़ न देना
बिछड़ने से पहले हम अपनी जान दे देंगे || फ़िल्म ‘नवरात्रि’ (1955)
दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई
मेरा मन है उदास जिया मंद मंद है
बादलों के घेरे में चाँद नज़रबंद है
बादल आये पर बरसात बाक़ी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गयी
दूर पपीहा बोला…
आँख मिचौली खेली, झूला झूम के झूले
बन में चमेली फूली, हम बहार में भूले
पर देनी थी जो सौगात बाक़ी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई
दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई
(1948) फ़िल्म ‘गजरे’